हरिद्वार

हरिद्वार
हरिद्वार हिन्दुओं के सात पवित्र स्थलों में से एक है। 3137 मीटर की ऊंचाई पर स्थित अपने स्रोत गौमुख (गंगोत्री हिमनद) से 253 किमी की यात्रा करके गंगा नदी हरिद्वार में मैदानी क्षेत्र में प्रथम प्रवेश करती है, इसलिए हरिद्वार को ‘गंगाद्वार’ के नाम सा भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है वह स्थान जहाँ पर गंगाजी मैदानों में प्रवेश करती हैं। हरिद्वार का अर्थ “हरि (ईश्वर) का द्वार” होता है।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, हरिद्वार वह स्थान है जहाँ अमृत की कुछ बूँदें भूल से घड़े से गिर गयीं जब गरुड़ उस घड़े को समुद्र मंथन के बाद ले जा रहे थे। चार स्थानों पर अमृत की बूंदें गिरीं और ये स्थान हैं:- उज्जैन, हरिद्वार, नासिक और प्रयाग| आज ये वें स्थान हैं जहां कुम्भ मेला चारों स्थानों में से किसी भी एक स्थान पर प्रति ३ वर्षों में और १२वें वर्ष इलाहाबाद में महाकुम्भ आयोजित किया जाता है। पूरी दुनिया से करोड़ों तीर्थयात्री, भक्तजन और पर्यटक यहां इस समारोह को मनाने के लिए एकत्रित होते हैं और गंगा नदी के तट पर शास्त्र विधि से स्नान इत्यादि करते हैं।
वह स्थान जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी थी उसे हर-की-पौडी पर ब्रह्म कुंड माना जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘ईश्वर के पवित्र पग’। हर-की-पौडी, हरिद्वार के सबसे पवित्र घाट माना जाता है और पूरे भारत से भक्तों और तीर्थयात्रियों के जत्थे त्योहारों या पवित्र दिवसों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करने के लिए आवश्यक माना जाता है।
हरिद्वार बहुत प्राचीन नगरी है। प्राचीन काल में कपिलमुनि के नाम पर इसे ‘कपिला’ भी कहा जाता था। ऐसा कहा जाता है कि यहाँ कपिल मुनि का तपोवन था। यह स्थान बड़ा रमणीक है और यहाँ की गंगा हिंदुओं द्वारा बहुत पवित्र मानी जाती है। ह्वेनसांग भी ८वीं शताब्दी में हरिद्वार आया था और इसका वर्णन उसने ‘मोन्यु-लो’ नाम से किया है। मोन्यू लो को आधुनिक मायापुरी गाँव समझा जाता है जो हरिद्वार के निकट में ही है। प्राचीन किलों और मंदिरों के अनेक खंडहर यहाँ विद्यमान है। यहाँ का प्रसिद्ध स्थान ‘हर की पैडी’ है जहाँ गंगा द्वार का मंदिर भी है। हर की पैड़ी पर विष्णु का चरणचिह्न है जहाँ लाखों यात्री स्नान कर चरण की पूजा करते हैं और यहाँ का पवित्र गंगा जल देश के प्राय: सभी स्थानो में यात्रियों द्वारा ले जाया जाता है। लोगों का विश्वास है कि यहाँ मरनेवाला प्राणी परमपद पाता है और स्नान से जन्म जन्मांतर का पाप कट जाता है और परलोक में हरिपद की प्राप्ति होती है। अनेक पुराणों में इस तीर्थ का वर्णन और प्रशंसा उल्लिखित है। प्रकृतिप्रेमियों के लिए हरिद्वार स्वर्ग जैसा सुन्दर है। हरिद्वार भारतीय संस्कृति और सभ्यता का एक बहुरूप्रदर्शक प्रस्तुत करता है। इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में कपिलस्थान, गंगाद्वार और मायापुरी के नाम से भी किया गया है। यह चार धाम यात्रा के लिए प्रवेश द्वार भी है (उत्तराखंड के चार धाम है:- बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री), इसलिए भगवान शिव के अनुयायी और भगवान विष्णु के अनुयायी इसे क्रमशः हरद्वार और हरिद्वार के नाम से पुकारते है। हर यानी शिव और हरि यानी विष्णु।
हर की पौडी:
यह पवित्र घाट राजा विक्रमादित्य ने पहली शताब्दी ईसा पूर्व में अपने भाई भ्रिथारी की याद में बनवाया था। मान्यता है कि भ्रिथारी हरिद्वार आया था और उसने पावन गंगा के तटों पर तपस्या की थी। जब वह मरे, उनके भाई ने उनके नाम पर यह घाट बनवाया, जो बाद में हरी- की- पौड़ी कहलाया जाने लगा. हर की पौड़ी का सबसे पवित्र घाट ब्रह्मकुंड है। संध्या समय गंगा देवी की हरी की पौड़ी पर की जाने वाली आरती किसी भी आगंतुक के लिए महत्वपूर्ण अनुभव है। स्वरों व रंगों का एक कौतुक समारोह के बाद देखने को मिलता है जब तीर्थयात्री जलते दीयों को नदी पर अपने पूर्वजों की आत्मा की शान्ति के लिए बहाते हैं। विश्व भर से हजारों लोग अपनी हरिद्वार यात्रा के समय इस प्रार्थना में उपस्थित होने का ध्यान रखते हैं। वर्तमान के अधिकांश घाट 1700 के समय विकसित किये गए थे।