बौद्धगया

महाबोधि विहार
यह विहार मुख्य् विहार या महाबोधि विहार के नाम से भी जाना जाता है। इस विहार की बनावट सम्राट अशोक द्वारा स्थाोपित स्तुयप के समान है। इस विहार में गौतम बुद्ध की एक बहुत बड़ी मूर्त्ति स्था।पित है। यह मूर्त्ति पदमासन की मुद्रा में है। यहां यह अनुश्रुति प्रचिलत है कि यह मूर्त्ति उसी जगह स्था पित है जहां गौतम बुद्ध को ज्ञान बुद्धत्व (ज्ञान) प्राप्तय हुआ था। विहार के चारों ओर पत्थ र की नक्काजशीदार रेलिंग बनी हुई है। ये रेलिंग ही बोधगया में प्राप्त सबसे पुराना अवशेष है। इस विहार परिसर के दक्षिण-पूर्व दिशा में प्रा‍कृतिक दृश्योंग से समृद्ध एक पार्क है जहां बौद्ध भिक्खु ध्यातन साधना करते हैं। आम लोग इस पार्क में विहार प्रशासन की अनुमति लेकर ही प्रवेश कर सकते हैं। इस विहार परिसर में उन सात स्था नों को भी चिन्हित किया गया है जहां बुद्ध ने ज्ञान प्राप्‍ित के बाद सात सप्ता।ह व्यवतीत किया था। जातक कथाओं में उल्लेीखित बोधि वृक्ष भी यहां है। यह एक विशाल पीपल का वृक्ष है जो मुख्यद विहार के पीछे स्थित है। बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्ति हुआ था। वर्तमान में जो बोधि वृक्ष वह उस बोधि वृक्ष की पांचवीं पीढी है। विहार समूह में सुबह के समय घण्टोंच की आवाज मन को एक अजीब सी शांति प्रदान करती है। मुख्यक विहार के पीछे बुद्ध की लाल बलुए पत्थेर की 7 फीट ऊंची एक मूर्त्ति है। यह मूर्त्ति विजरासन मुद्रा में है। इस मूर्त्ति के चारों ओर विभिन्नक रंगों के पताके लगे हुए हैं जो इस मूर्त्ति को एक विशिष्टो आकर्षण प्रदान करते हैं। कहा जाता है कि तीसरी शताब्दीं ईसा पूर्व में इसी स्थाान पर सम्राट अशोक ने हीरों से बना राजसिहांसन लगवाया था और इसे पृथ्वीि का नाभि केंद्र कहा था। इस मूर्त्ति की आगे भूरे बलुए पत्थार पर बुद्ध के विशाल पदचिन्हं बने हुए हैं। बुद्ध के इन पदचिन्होंथ को धर्मचक्र प्रर्वतन का प्रतीक माना जाता है। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्‍ित के बाद दूसरा सप्ता ह इसी बोधि वृक्ष के आगे खड़ा अवस्थाि में बिताया था। यहां पर बुद्ध की इस अवस्थाी में एक मूर्त्ति बनी हुई है। इस मूर्त्ति को अनिमेश लोचन कहा जाता है। मुख्य विहार के उत्तर पूर्व में अनिमेश लोचन चैत्यन बना हुआ है। मुख्य् विहार का उत्तरी भाग चंकामाना नाम से जाना जाता है। इसी स्थाान पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्‍ित के बाद तीसरा सप्तानह व्यहतीत किया था। अब यहां पर काले पत्थसर का कमल का फूल बना हुआ है जो बुद्ध का प्रतीक माना जाता है। महाबोधि विहार के उत्तर पश्‍िचम भाग में एक छतविहीन भग्नाइवशेष है जो रत्ना घारा के नाम से जाना जाता है। इसी स्थाीन पर बुद्ध ने ज्ञान प्राप्‍ित के बाद चौथा सप्ताीह व्यितीत किया था। दन्तवकथाओं के अनुसार बुद्ध यहां गहन ध्याान में लीन थे कि उनके शरीर से प्रकाश की एक किरण निकली। प्रकाश की इन्हींा रंगों का उपयोग विभिन्न देशों द्वारा यहां लगे अपने पताके में किया है। बुद्ध ने मुख्यच विहार के उत्तरी दरवाजे से थोड़ी दूर पर स्थित अजपाला-निग्रोधा वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्‍ित के बाद पांचवा सप्ता।ह व्तीध नत किया था। बुद्ध ने छठा सप्ताोह महाबोधि विहार के दायीं ओर स्थित मूचालिंडा क्षील के नजदीक व्य‍तीत किया था। यह क्षील चारों तरफ से वृक्षों से घिरा हुआ है। इस क्षील के मध्ये में बुद्ध की मूर्त्ति स्थाकपित है। इस मूर्त्ति में एक विशाल सांप बुद्ध की रक्षा कर रहा है। इस मूर्त्ति के संबंध में एक दंतकथा प्रचलित है। इस कथा के अनुसार बुद्ध प्रार्थना में इतने तल्ली्न थे कि उन्हें आंधी आने का ध्यामन नहीं रहा। बुद्ध जब मूसलाधार बारिश में फंस गए तो सांपों का राजा मूचालिंडा अपने निवास से बाहर आया और बुद्ध की रक्षा की।
इस विहार परिसर के दक्षिण-पूर्व में राजयातना वृ‍क्ष है। बुद्ध ने ज्ञान प्राप्‍ित के बाद अपना सांतवा सप्ता ह इसी वृक्ष के नीचे व्यवतीत किया था। यहीं बुद्ध दो बर्मी (बर्मा का निवासी) व्यार‍पारियों से मिले थे। इन व्या पारियों ने बुद्ध से आश्रय की प्रार्थना की। इन प्रार्थना के रूप में बुद्धमं शरणम् गच्छातमि (मैं बुद्ध को शरण जाता हू) का उच्चायरण किया। इसी के बाद से यह प्रार्थना प्रसिद्ध हो गई।

तिब्बदतियन मठ
(महाबोधि विहार के पश्‍िचम में पांच मिनट की पैदल दूरी पर स्थित) जोकि बोधगया का सबसे बड़ा और पुराना मठ है 1934 ई. में बनाया गया था। बर्मी विहार (गया-बोधगया रोड पर निरंजना नदी के तट पर स्थित) 1936 ई. में बना था। इस विहार में दो प्रार्थना कक्ष है। इसके अलावा इसमें बुद्ध की एक विशाल प्रतिमा भी है। इससे सटा हुआ ही थाई मठ है (महाबोधि विहार परिसर से 1किलोमीटर पश्‍िचम में स्थित)। इस मठ के छत की सोने से कलई की गई है। इस कारण इसे गोल्डेहन मठ कहा जाता है। इस मठ की स्थाटपना थाईलैंड के राजपरिवार ने बौद्ध की स्थाीपना के 2500 वर्ष पूरा होने के उपलक्ष्य में किया था। इंडोसन-निप्पान-जापानी मंदिर (महाबोधि मंदिर परिसर से 11.5 किलोमीटर दक्षिण-पश्‍िचम में स्थित) का निर्माण 1972-73 में हुआ था। इस विहार का निर्माण लकड़ी के बने प्राचीन जापानी विहारों के आधार पर किया गया है। इस विहार में बुद्ध के जीवन में घटी महत्वापूर्ण घटनाओं को चित्र के माध्य म से दर्शाया गया है। चीनी विहार (महाबोधि मंदिर परिसर के पश्‍िचम में पांच मिनट की पैदल दूरी पर स्थित) का निर्माण 1945 ई. में हुआ था। इस विहार में सोने की बनी बुद्ध की एक प्रतिमा स्थापपित है। इस विहार का पुनर्निर्माण 1997 ई. किया गया था। जापानी विहार के उत्तर में भूटानी मठ स्थित है। इस मठ की दीवारों पर नक्काइशी का बेहतरीन काम किया गया है। यहां सबसे नया बना विहार वियतनामी विहार है। यह विहार महाबोधि विहार के उत्तर में 5 मिनट की पैदल दूरी पर स्थित है। इस विहार का निर्माण 2002 ई. में किया गया है। इस विहार में बुद्ध के शांति के अवतार अवलोकितेश्वलर की मूर्त्ति स्थाापित है।