बृज चौरासी कोश

ब्रज चौरासी कोस : अधिक मास यानी मलमास या पुरुषोत्तम मास में ब्रज के मठ मंदिरों में यूं तो अनेक धार्मिक कार्यक्रम और अनुष्ठान होते हैं, लेकिन ब्रज के प्रमुख स्थलों मथुरा, वृंदावन और गोवर्धन की परिक्रमा का विशेष महत्व है। धार्मिक मान्यता है कि इस समय में जो भी पूजा या धार्मिक कार्य किए जाते हैं उसका कई गुणा पुण्य मिलता है। इस माह में ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा का भी अपना अलग महत्व है। इस परिक्रमा में कृष्ण काल के तमाम लीला स्थल और देवालय शामिल हैं जो पूरे ब्रज में चौरासी कोस में फैले हुए हैं। मान्यता है कि अधिक मास में इनकी परिक्रमा करके श्रद्धालु पुण्य कमाते हैं। ब्रज चौरासी कोस की यह परिक्रमा हरियाणा और राजस्थान के गांवों से भी होकर गुजरती है।
करीब 268 किलोमीटर परिक्रमा मार्ग में करीब 1300 के आसपास गांव पड़ते हैं। कृष्ण की लीलाओं से जुड़ी 1100 सरोवरें, 36 वन-उपवन, पहाड़-पर्वत पड़ते हैं। बालकृष्ण की लीलाओं के साक्षी उन स्थल और देवालयों के दर्शन भी परिक्रमार्थी करते हैं जिनके दर्शन शायद ही पहले कभी किए हों। परिक्रमा के दौरान श्रद्धालुओं को यमुना नदी को भी पार करना होता है।
सभी तीर्थों को ब्रज में बुलाया
मान्यता है कि जब यशोदा मैया और नंद बाबा ने भगवान श्री कृष्ण से 4 धाम की यात्रा की इच्छा जाहिर की तो भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि आप बुजुर्ग हो गए हैं, इसलिए मैं आप के लिए यहीं सभी तीर्थों और चारों धामों को आह्वान कर बुला देता हूं। उसी समय से केदरनाथ और बद्रीनाथ भी यहां मौजूद हो गए। 84 कोस के अंदर राजस्थान की सीमा पर मौजूद पहाड़ पर केदारनाथ का मंदिर है। पर्वत पर नंदी स्वरूप में दिखने वाली विशालकाय शिला के नीचे शिव जी का छोटा सा मंदिर है। इसके अलावा बद्रीनाथ भी 84 कोस में ही विराजमान हैं। जिन्हें बूढ़े बद्री के नाम से जाना जाता है। मंदिर के पास ही अलकनंदा कुंड भी है। इसके अलावा गुप्त काशी, यमुनोत्री और गंगोत्री के भी दर्शन यहां श्रद्धालुओं को होते हैं।

शॉर्टकट पर अधूरी मानी जाती है परिक्रमा
84 कोस परिक्रमा के लिए स्थान, गांव और इसकी जद में आने वाले मंदिर और परिक्रमा मार्ग पहले से ही तय हैं और उसी रास्ते से होकर श्रद्धालु परिक्रमा करते हैं। कीचड़, कंकड़-पत्थर के रास्तों पर ही चलकर श्रद्धालु परिक्रमा पूरी करते हैं। कोई भी श्रद्धालु दूरी कम करने के लिए शॉर्टकट या दूसरे रास्तों से होकर नहीं गुजरता और ऐसा करने पर उसकी परिक्रमा अधूरी मानी जाती है।

प्रमुख सरोवर
कृष्ण की लीलाओं की साक्षी और उनसे जुड़ी प्रमुख सरोवरों में जो प्रमुख सरोवरें है, उनमें सूरज सरोवर, कुसुम सरोवर, विमल सरोवर, चंद्र सरोवर, रूप सरोवर, पान सरोवर, मान सरोवर, प्रेम सरोवर, नारायण सरोवर, नयन सरोवर आदि हैं। परिक्रमाथी इन सरोवरों के दर्शन करने के साथ ही आचमन लेकर और इनमें स्नान कर स्वयं को धन्य मानते हैं।

ब्रज में विद्यमान 16 देवियां
कात्यायनी देवी, शीतला देवी, संकेत देवी, ददिहारी, सरस्वती देवी, वृंदादेवी, वनदेवी, विमला देवी, पोतरा देवी, नरी सैमरी देवी, सांचैली देवी, नौवारी देवी, चौवारी देवी, योगमाया देवी, मनसा देवी, बंदी की आनंदी देवी।

ब्रज क्षेत्र के प्रमुख महादेव मंदिर
भूतेश्वर महादेव, केदारनाथ, आशेश्वर महादेव, चकलेश्वर महादेव, रंगेश्वर महादेव, नंदीश्वर महादेव, पिपलेश्वर महादेव, रामेश्वर महादेव, गोकुलेश्वर महादेव, चिंतेश्वर महादेव, गोपेश्वर महादेव, चक्रेश्वर महादेव।

ब्रज चौरासी कोस यात्रा
वराह पुराण कहता है कि पृथ्वी पर 66 अरब तीर्थ हैं और वे सभी चातुर्मास में ब्रज में आकर निवास करते हैं। यही वजह है कि व्रज यात्रा करने वाले इन दिनों यहाँ खिंचे चले आते हैं। हज़ारों श्रद्धालु ब्रज के वनों में डेरा डाले रहते हैं।
 ब्रजभूमि की यह पौराणिक यात्रा हज़ारों साल पुरानी है। चालीस दिन में पूरी होने वाली ब्रज चौरासी कोस यात्रा का उल्लेख वेद-पुराण व श्रुति ग्रंथसंहिता में भी है। कृष्ण की बाल क्रीड़ाओं से ही नहीं, सत युग में भक्त ध्रुव ने भी यही आकर नारद जी से गुरु मन्त्र ले अखंड तपस्या की व ब्रज परिक्रमा की थी।
 त्रेता युग में प्रभु राम के लघु भ्राता शत्रुघ्न ने मधु पुत्र लवणासुर को मार कर ब्रज परिक्रमा की थी। गली बारी स्थित शत्रुघ्न मंदिर यात्रा मार्ग में अति महत्व का माना जाता है।
 द्वापर युग में उद्धव जी ने गोपियों के साथ ब्रज परिक्रमा की।
 कलि युग में जैन और बौद्ध धर्मों के स्तूप बैल्य संघाराम आदि स्थलों के सांख्य इस परियात्रा की पुष्टि करते हैं।
 14वीं शताब्दी में जैन धर्माचार्य जिन प्रभु शूरी की में ब्रज यात्रा का उल्लेख आता है।
 15वीं शताब्दी में माध्व सम्प्रदाय के आचार्य मघवेंद्र पुरी महाराज की यात्रा का वर्णन है तो
 16वीं शताब्दी में महाप्रभु वल्लभाचार्य, गोस्वामी विट्ठलनाथ, चैतन्य मत केसरी चैतन्य महाप्रभु, रूप गोस्वामी, सनातन गोस्वामी, नारायण भट्ट, निम्बार्क संप्रदाय के चतुरानागा आदि ने ब्रज यात्रा की थी।

परिक्रमा मार्ग
इसी यात्रा में मथुरा की अंतरग्रही परिक्रमा भी शामिल है। मथुरा से चलकर यात्रा सबसे पहले भक्त ध्रुव की तपोस्थली
1. मधुवन पहुँचती है।
2. तालवन,
3. कुमुदवन,
4. शांतनु कुण्ड
5. सतोहा,
6. बहुलावन,
7. राधा-कृष्ण कुण्ड,
8. गोवर्धन
9. काम्यक वन,
10. संच्दर सरोवर,
11. जतीपुरा,
12. डीग का लक्ष्मण मंदिर,
13. साक्षी गोपाल मंदिर व
14. जल महल,
15. कमोद वन,
16. चरन पहाड़ी कुण्ड,
17. काम्यवन,
18. बरसाना,
19. नंदगांव,
20. जावट,
21. कोकिलावन,
22. कोसी,
23. शेरगढ,
24. चीर घाट,
25. नौहझील,
26. श्री भद्रवन,
27. भांडीरवन,
28. बेलवन,
29. राया वन, यहाँ का
30. गोपाल कुण्ड,
31. कबीर कुण्ड,
32. भोयी कुण्ड,
33. ग्राम पडरारी के वनखंडी में शिव मंदिर,
34. दाऊजी,
35. महावन,
36. ब्रह्मांड घाट,
37. चिंताहरण महादेव,
38. गोकुल,
39. लोहवन,
40. वृन्दावन का मार्ग में तमाम पौराणिक स्थल हैं।

दर्शनीय स्थल – ब्रज चौरासी कोस यात्रा में दर्शनीय स्थलों की भरमार है। पुराणों के अनुसार उनकी उपस्थिति अब कहीं-कहीं रह गयी है। प्राचीन उल्लेख के अनुसार यात्रा मार्ग में
12 वन
24 उपवन
चार कुंज,
चार निकुंज,
चार वनखंडी,
चार ओखर,
चार पोखर,
365 कुण्ड,
चार सरोवर,
दस कूप,
चार बावरी,
चार तट,
चार वट वृक्ष,
पांच पहाड़,
चार झूला,
33 स्थल रास लीला के तो हैं हीं, इनके अलावा कृष्णकालीन अन्य स्थल भी हैं। चौरासी कोस यात्रा मार्ग मथुरा में ही नहीं, अलीगढ़, भरतपुर, गुड़गांव, फरीदाबाद की सीमा तक में पड़ता है, लेकिन इसका अस्सी फीसदी हिस्सा मथुरा में है।
36 नियमों का नित्य पालन ब्रज यात्रा के अपने नियम हैं इसमें शामिल होने वालों के प्रतिदिन 36 नियमों का कड़ाई से पालन करना होता है, इनमें प्रमुख हैं धरती पर सोना, नित्य स्नान, ब्रह्मचर्य पालन, जूते-चप्पल का त्याग, नित्य देव पूजा, कर्थसंकीर्तन, फलाहार, क्रोध, मिथ्या, लोभ, मोह व अन्य दुर्गुणों का त्याग प्रमुख है। इसके अलावा सत्य बोलना, दूसरों के अपराधों का क्षमा करना, तीर्थों में स्नान करना, आचमन करना, भगवत निवेदित प्रसाद का सेवन, तुलसीमालापर हरिनामर कीर्तन या वैष्णवों के साथ हरिनाम संकीर्तन करना चाहिए। परिक्रमा के समय मार्ग में स्थित ब्राह्मण, श्रीमूर्ति, तीर्थ और भगवद्लीला स्थलियों का विधिपूर्वक सम्मान एवं पूजा करते हुए परिक्रमा करें। परिक्रमा पथ में वृक्ष, लता, गुल्म, गो आदि को नहीं छेड़ना, साधु-संतों आदि का अनादर नहीं करना, साबुन, तेल और क्षौर कार्य का वर्जन करना, चींटी इत्यादि जीव-हिंसा से बचना, परनिन्दा, पर चर्चा और कलेस से सदा बचना चाहिए।