घुश्मेश्वर महादेव

घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग
शिव का बारहवां अवतार ‘घुमेश्वर’के नाम से प्रसिद्ध है. घुश्मा के मृत पुत्र को जीवित करने के लिए अवतरित प्रभु शिव ही घुमेश्वर या घुश्मेश्वर के नाम से जाने जाते हैं. इसका स्थान द्वादश ज्योतिर्लिंगों में आता है.
शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव अपने भक्तों के कल्याण के लिए पूरी धरती पर जगह-जगह भ्रमण करते रहे हैं. अपने भक्तों की उपासना से अभिभोर होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया और अपने भक्तों के अनुरोध पर अपने अंश रूपी शिवलिंग के रूप में वहां सदा के लिए विराजमान हो गए. ज्योतिर्लिंगों में द्वादशवें ज्योतिर्लिंग का नाम ‘घुश्मेश्वर’ है. इन्हें ‘घृष्णेश्वर’ और ‘घुसृणेश्वर’ के नाम से भी जाना जाता है. शिवमहापुराण में घुश्मेश्वर ज्योतिर्लिंग का वर्णन है. ज्योतिर्लिंग ‘घुश्मेश’ के समीप ही एक सरोवर भी है. जिसे शिवालय के नाम से जाना जाता है. कहा जाता है कि जो भी इस सरोवर का दर्शन करता है उसकी सभी इच्छाओं की पूर्ति होती है.
कथा
दक्षिण देश के देवगिरि पर्वत के निकट सुकर्मा नामक ब्राह्मण अपनी पति परायण पत्नी सुदेश के साथ रहता था। वे दोनों शिव भक्त थे किंतु सन्तान न होने से चिंतित रहते थे। पत्नी के आग्रह पर उसके पत्नी की बहन घुस्मा के साथ विवहा किया जो परम शिव भक्त थी। शिव कृपा से उसे एक पुत्र धन की प्राप्ति हुई। इससे सुदेश कार् ईष्या होने लगी और उसने अवसर पा कर सौत के बेटे की हत्या कर दी। भगवान शिवजी की कृपा से बालक जी उठा तथा घुस्मा की प्रार्थना पर वहां शिवजी सदैव वास करने का वरदान दिया और वहां पर वास करने लगे और घुश्मेश्वर के नाम से प्रसिध्द हुएं उस तालाब का नाम भी तबसे शिवालय हो गया।