गंगासागर

क्यों कहते हैं सारे तीर्थ बार बार गंगासागर एक बार
भारत के तीर्थों में एक महातीर्थ है जिसे हम गंगासागर के रूप में जानते हैं। गंगाजी इसी स्थान पर सागर में आकर मिली है। इसी स्थान पर राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ था। यहां मकर संक्रान्ति पर बहुत बड़ा मेला लगता है जहां लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए आते हैं। कहते हैं यहीं संक्रान्ति पर स्नान करने पर सौ अश्वमेघ यज्ञ और एक हजार गाऐं दान करने का फल मिलता है।

कथा: एक बार कपिल मुनि ने श्राप देकर राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया। तब अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए राजा सगर के पड़पोते भागीरथ ने हिमालय पर जाकर कड़ी तपस्या की और गंगा को प्रथ्वी पर लाए। तब गंगा ने इसी स्थान पर सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष प्रदान किया। तभी से गंगा को भागीरथी कहा जाने लगा। इस जगह जहां मेला लगता है वहीं से गंगाजी समुद्र में मिलती हैं।
तीर्थ रूप में मान्यता
हिमाच्छादित हिमालय के हिमनद से आरम्भ होकर गंगा नदी, पर्वतों से नीचे उतरती है, और हरिद्वार से मैदानी स्थानों पर पहुँचती है, और आगे बढ़ते हुए प्राचीन बनारस व प्रयाग से प्रवाहित होती हुई, बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है। बंगाल में हुगली नदी के मुहाने पर जहाँ गंगा सहस्रों जलधाराओं में फूट पड़ती है तथा समुद्र में बह जाती है, उस स्थान को ‘सागर द्वीप’ कहा जाता है। इस स्थल की गंगासागर नामक एक तीर्थ के रूप में मान्यता है।
हिन्दू आस्था स्थल
लगभग दो–तीन लाख व्यक्ति प्रतिवर्ष इस मेले में आते हैं। इस स्थान को हिन्दुओं के एक विशेष पवित्र स्थल के रूप में जाना जाता है। यह समस्त हिन्दू धर्म के मानने वालों का आस्था स्थल है। ऐसा विश्वास किया जाता है कि, गंगासागर की पवित्र तीर्थयात्रा सैकड़ों तीर्थयात्राओं के समान है—”अन्य तीर्थ बार–बार, गंगासागर एक बार।” सुन्दरवन निकट होने के कारण मेले को कई विषम स्थितियों का सामना करना पड़ता है। तूफ़ान व ऊँची लहरें हर वर्ष मेले में बाधा डालती हैं, परन्तु परम्परा और श्रद्धा के सामने हर बाधा बोनी हो जाती है।