कलकत्ता

काली देवी मंदिर , कलकत्ता
कालीघाट शक्तिपीठ कोलकाता का एक क्षेत्र है, जो अपने काली माता के मंदिर के लिये प्रसिद्ध है। इस शक्तिपीठ में स्थित प्रतिमा की प्रतिष्ठा कामदेव ब्रह्मचारी (सन्यासपूर्व नाम जिया गंगोपाध्याय) ने की थी। शक्तिपीठ बनने का मुख्य कारण माँ सती के दाये पैर की कुछ अंगुलिया इसी जगह गिरी थी। आज यह जगह काली भक्तो के लिए सबसे बड़ा मंदिर है। माँ की प्रतिमा में जिव्हा सोने की है जो की बाहर तक निकली हुई है
1847 की बात है। देश में अंग्रेजों का शासन था। पश्चिम बंगाल में रानी रासमनी नाम की एक बहुत ही अमीर विधवा थी। उनकी जिंदगी में सबकुछ था लेकिन पति का सुख नहीं था। रानी रासमनी जब उम्र के चौथे पहर में आ गई तो उनके मन में सभी तीर्थों के दर्शन करने का खयाल आया। रानी रासमनी देवी माता की बहुत बड़ी उपासक थी। उन्होंने सोचा कि वो अपनी तीर्थ यात्रा की शुरुआत वराणसी से करेंगी और वहीं रहकर देवी का कुछ दिनों तक ध्यान करेंगी। उन दिनों वाराणसी और कोलकाता के बीच कोई रेल लाइन नहीं थी।
कोलकाता से वाराणसी जाने के लिए अमीर लोग नाव का सहारा लेते थे। दोनों ही शहर से गंगा गुजरती हैं इसलिए लोग गंगा के रास्ते ही वाराणसी तक जाना चाहते थे। रानी रासमनी ने भी यही फैसला किया। उनका काफिला वाराणसी जाने के लिए तैयार हुआ। लेकिन जाने के ठीक एक रात पहले रानी के साथ एक अजीब वाकया हुआ। मन में देवी का ध्यान कर के वो सोई थी। रात में एक सपना आया। सपने में देवी काली प्रकट हुई और उनसे कहा कि वाराणसी जाने की कोई जरूरत नहीं है। आप गंगा के किनारे मेरी प्रतिमा को स्थापित करिए। एक खूबसूरत मंदिर बनाइए। मैं उस मंदिर की प्रतिमा में खुद प्रकट होकर श्रद्धालुओं की पूजा को स्वीकार करुंगी। रानी की आंख खुली। सुबह होते ही वाराणसी जाने का कार्यक्रम रद्द कर दिया गया और गंगा के किनारे मां काली के मंदिर के लिए जगह की तलाश शुरू कर दी गई। कहते हैं कि जब रानी इस घाट पर गंगा के किनारे जगह की तलाश करते करते आईं तो उनके अंदर से एक आवाज आई कि हां इसी जगह पर मंदिर का निर्माण होना चाहिए। फिर ये जगह खरीद ली गई और मंदिर का काम तेजी से शुरु हो गया। ये बात 1847 की है और मंदिर का काम पूरा हुआ 1855 यानी कुल आठ सालों में।

विक्टोरिया मेमोरियल, कलकत्ता
विक्टोररिया मेमोरियल पश्चिम बंगाल राज्य के कोलकाता शहर में स्थित स्मारक है, जो रानी विक्टोरिया को समर्पित है। इसकी स्थाटपना अंग्रेज़ गवर्नर-जनरल लॉर्ड कर्ज़न ने 1905 ई. में की थी। संगमरमर का बना यह स्माोरक ब्रिटिश और मुग़ल वास्तुीशैली का अद्भुत संगम है।
विक्टोीरिया मेमोरियल की स्थाुपना लॉर्ड कर्ज़न की पहल पर इंडो-ब्रिटिश इतिहास पर विशेष जोर देने के साथ महारानी विक्टोरिया की याद में काल विशेष संग्रहालय के रूप में की गई थी।
• यह 57 एकड़ भूमि पर निर्मित है और इसे ‘राज का ताज’ कहा जाता है, क्योंेकि भारत में इंडो-ब्रिटिश स्था पत्यग कला के सर्वोत्तयम नमूने के रूप में मान्यमता प्राप्तथ विक्टोहरिया मेमोरियल को सन 1921 में आम जन के लिए खोला गया था और 1935 के भारत सरकार के अधिनियम द्वारा इसे राष्ट्री य महत्त्व का संस्थारन घोषित किया गया।
• वर्तमान में विक्टोनरिया मेमोरियल भारत में सर्वाधिक लोगों द्वारा देखे जाने वाले संग्रहालय के रूप में जाना जाता है। वर्ष2013-2014 में इसकी वीथियों का लगभग 20 लाख लोगों ने और बगीचे का अलग से 13 लाख से अधिक लोगों ने दौरा किया।
• विक्टोनरिया मेमोरियल संग्रह के पास नौ दीर्घाओं में प्रदर्शित 28,394 कलाकृतियाँ हैं, जो देश की संस्कृति को दर्शाता है।
• इसकी दीवारों पर बेहतरीन नक़्क़ाशी की गई है। इस स्मारक में शिल्पकला का सुंदर मिश्रण है। इसके मुग़ल शैली के गुंबदों में सौरसेनिक और पुनर्जागरण काल की शैलियाँ दिखाई पड़ती हैं।
• मेमोरियल में एक शानदार संग्रहालय है, जहाँ महारानी विक्टोरिया के पियानो और स्टडी-डेस्क सहित 3000 से अधिक वस्तुएं प्रदर्शित की गई हैं।