उत्तराखंड चार धाम

चार धाम यात्रा

उत्तराखंड के चार धाम :-
श्रद्धालुओं के लिए हरिद्वार स्वर्ग जैसा सुन्दर है। हरिद्वार भारतीय संस्कृति और सभ्यता का एक बहुरूपदृश्य प्रस्तुत करता है। इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में भी मिलता है| कपिलस्थान, गंगाद्वार और मायापुरी के नाम से भी किया गया है| हरिद्वार उत्तराखंड के चार धामों की यात्रा के लिए प्रवेश द्वार है| इसलिए भगवान शिव के अनुयायी और भगवान विष्णु के अनुयायी इसे क्रमशः हरद्वार और हरिद्वार के नाम से पुकारते है। हर यानी शिव और हरि यानी विष्णु।
उत्तरांचल के चार धाम यात्रा की उत्पमत्ति के संबंध में कोई निश्चित मान्यहता या साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। लेकिन चार धाम भारत के चार धार्मिक स्थरलों का एक परिधि है। इस पवित्र परिधि के अंतर्गत भारत के चार दिशाओं के महत्वणपूर्ण मंदिर आते हैं। ये मंदिरें हैं-पुरी रामेश्वरम, द्वारका और बद्री नाथ इन मंदिरों को 8वीं शदी में आदि शंकराचार्य ने एक सूत्र में पिरोया था। इन चारों मंदिरों में से किसको परम स्थाधन दिया जाए इस बात का निर्णय करना संभव नहीं है। लेकिन इन सब में बद्रीनाथ सबसे ज्यामदा महत्वसपूर्ण और अधिक तीर्थयात्रियों द्वारा दर्शन करने वाला मंदिर ह इसके अलावा हिमालय पर स्थित छोटा चार धाम मंदिरों में भी बद्रीनाथ ज्या दा महत्वय वाला और लोकप्रिय है। इस छोटे चार धाम में बद्रीनाथ के अलावा केदारनाथ (शिव मंदिर), यमुनोत्री एवं गंगोत्री (देवी मंदिर) शमिल हैं। यह चारों धाम हिंदू धर्म में अपना अलग और महत्वनपूर्ण स्थािन रखते हैं। बीसवीं शताब्दी के मध्यऔ में हिमालय की गोद में बसे इन चारों तीर्थस्थधलों को छोटा’ विशेषण दिया गया जो आज भी यहां बसे इन देवस्थाहनों को परिभाषित करते हैं। चार धाम के यात्रा की यह डगर कहीं आसान तो कहीं बहुत कठिन है लेकिन इस यात्रा के बाद मनुष्य को जो आनद की अनुभूति होती है वो सारे थकान को दूर कर देती है । भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ हिंदुओं के सबसे पवित्र स्थाथन हैं। धर्मग्रंथों में कहा गया है कि जो पुण्यागत्माअ यहां का दर्शन करने में सफल होते हैं उनका न केवल इस जन्म का पाप धुल जाता है वरन वे जीवन-मरण के बंधन से भी मुक्तर हो जाते हैं। इस स्थाहन के संबंध में यह भी कहा जाता है कि यह वही स्थनल है जहां पृथ्वीन और स्वेर्ग एकाकार होते हैं। तीर्थयात्री इस यात्रा के दौरान सबसे पहले यमुनोत्री (यमुना) और गंगोत्री (गंगा) का दर्शन करते हैं। यहां से पवित्र जल लेकर श्रद्धालु केदारेश्वतर पर जलाभिषेक करते हैं। इन तीर्थयात्रियों के लिए परंपरागत मार्ग इस प्रकार है-
हरिद्वार – ऋषिकेश- देव प्रयाग – टिहरी – धरासु -युमुनोत्री- उत्तरकाशी- गंगोत्री – त्रियुगनारायण – गौरिकुंड -केदारनाथ
यह मार्ग परंपरागत हिंदू धर्म में होने वाले पवित्र परिक्रमा के समान है। जबकि केदारनाथ जाने के लिए दूसरा मार्ग ऋषिकेश से होते हुए देवप्रयाग, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, अगस्तामुनी, गुप्तशकाशी और गौरिकुंड से होकर जाता है। केदारनाथ के समीप ही मंदाकिनी का उद्गम स्थ,ल है। मंदाकिनी नदी रूद्रप्रयाग में अलकनंदा नदी में जाकर मिलती है।