वाराणसी

वाराणसी
काशी विश्वनाथ मंदिर, जिसे कई बार स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है,[81] अपने वर्तमान रूप में १७८० में इंदौर की महारानी अहिल्या बाई होल्करद वारा बनवाया गया था। ये मंदिर गंगा नदी के दशाश्वमेध घाट के निकट ही स्थित है। इस मंदिर की काशी में सर्वोच्च महिमा है, क्योंकि यहां विश्वेश्वर या विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग स्थापित है। इस ज्योतिर्लिंग का एक बार दर्शनमात्र किसी भी अन्य ज्योतिर्लिंग से कई गुणा फलदायी होता है। १७८५ में तत्कालीन गवर्नर जनरल वार्रन हास्टिंग्स के आदेश पर यहां के गवर्नर मोहम्मद इब्राहिम खां ने मंदिर के सामने ही एक नौबतखाना बनवाया था। १८३९ में पंजाब के शासक पंजाब केसरी महाराजा रणजीत सिंह इस मंदिर के दोनों शिखरों को स्वर्ण मंडित करवाने हेतु स्वर्ण दान किया था। २८ जनवरी १९८३ को मंदिर का प्रशासन उत्तर प्रदेश सरकार नेल लिया और तत्कालीन काशी नरेश डॉ॰विभूति नारायण सिंह की अध्यक्षता में एक न्यास को सौंप दिया। इस न्यास में एक कार्यपालक समिति भी थी, जिसके चेयरमैन मंडलीय आयुक्त होते हैं।[82]
इस मंदिर का ध्वंस मुस्लिम मुगल शासक औरंगज़ेब ने करवाया था और इसके अधिकांश भाग को एक मस्जिद में बदल दिया। बाद में मंदिर को एक निकटस्थ स्थान पर पुनर्निर्माण करवाया गया।

दुर्गा मंदिर, जिसे मंकी टेम्पल भी कहते हैं; १८वीं शताब्दी में किसी समय बना था। यहां बड़ी संख्या में बंदरों की उपस्थिति के कारण इसे मंकी टेम्पल कहा जाता है। मान्यता अनुसार वर्तमाण दुर्गा प्रतिमा मानव निर्मित नहीं बल्कि मंदिर में स्वतः ही प्रकट हुई थी। नवरात्रि उत्सव के समय यहां हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ होती है। इस मंदिर में अहिन्दुओं का भीतर प्रवेश वर्जित है। इसका स्थापत्य उत्तर भारतीय हिन्दु वास्तु की नागर शैली का है। मंदिर के साथ ही एक बड़ा आयताकार जल कुण्ड भी है, जिसे दुर्गा कुण्ड कहते हैं। मंदिर का बहुमंजिला शिखर है[81] और वह गेरु से पुता हुआ है। इसका लाल रंग शक्ति का द्योतक है। कुण्ड पहले नदी से जुड़ा हुआ था, जिससे इसका जल ताजा रहता था, किन्तु बाद में इस स्रोत नहर को बंद कर दिया गया जिससे इसमें ठहरा हुआ जल रहता है और इसका स्रोत अबव र्शषआ या मंदिर की निकासी मात्र है। प्रत्येक वर्ष नाग पंचमी के अवसर पर भगवान विष्णु और शेषनाग की पूजा की जाती है। यहां संत भास्कपरानंद की समाधि भी है। मंगलवार और शनिवार को दुर्गा मंदिर में भक्तों की काफी भीड़ रहती है। इसी के पास हनुमान जी का संकटमोचन मंदिर है। महत्ता की दृष्टि से इस मंदिर का स्थागन काशी विश्वभनाथ और अन्नेपूर्णा मंदिर के बाद आता है।

अन्नपूर्णा मंदिर, वाराणसी
बनारस में काशी विश्वीनाथ मंदिर से कुछ ही दूरी पर माता अन्न पूर्णा का मंदिर है। इन्हेंे तीनों लोकों की माता माना जाता है। कहा जाता है कि इन्हों ने स्व्यं भगवान शिव को खाना खिलाया था। इस मंदिर की दीवाल पर चित्र बने हुए हैं। एक चित्र में देवी कलछी पकड़ी हुई हैं। अन्नपूर्णा मंदिर के प्रांगण में कुछ एक मूर्तियाँ स्थापित है,जिनमें माँ काली,शंकर पार्वती,और नरसिंह भगवान का मंदिर है। अन्नकूट महोत्सव पर माँ अन्नपूर्णा का स्वर्ण प्रतिमा एक दिन के लिऐ भक्त दर्शन कर सकतें हैं। अन्नपूर्णा मंदिर में आदि शंकराचार्य ने अन्नपूर्णा स्त्रोत् की रचना कर ज्ञान वैराग्य प्राप्ति की कामना की थी। यथा।. अन्नपूर्णे सदापूर्णे शंकरप्राण बल्लभे,ज्ञान वैराग्य सिद्धर्थं भिक्षां देहि च पार्वती।

तुलसी मानस मन्दिर
तुलसी मानस मन्दिर काशी के आधुनिक मंदिरों में एक बहुत ही मनोरम मन्दिर है। यह मन्दिर वाराणसी कैन्ट से लगभग पाँच कि॰ मि॰ दुर्गा मन्दिर के समीप में है। इस मन्दिर को सेठ रतन लाल सुरेकाा ने बनवाया था। पूरी तरह संगमरमर से बने इस मंदिर का उद्घाटन भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति महामहिम सर्वपल्ली राधाकृष्णऩ दृारा सन॒ 1964 में किया गया।[1][2] इस मन्दिर के मध्य मे श्री राम, माता जानकी, लक्ष्मणजी एवं हनुमानजी विराजमान है। इनके एक ओर माता अन्नपूर्णा एवं शिवजी तथा दूसरी तरफ सत्यनारायणजी का मन्दिर है। इस मन्दिर के सम्पूर्ण दीवार पर राम चरित मानस लिखा गया है। इसके दूसरी मंजिल पर संत तुलसी दास जी विराजमान है, साथ ही इसी मंजिल पर स्वचालित श्री राम एवं कृष्ण लीला होती है। इस मन्दिर के चारो तरफ बहुत सुहावना घास (लान) एवं रंगीन फुहारा है, जो बहुत ही मनमोहक है। यहाँ अन्नकूट महोत्सव पर छप्पन भोग की झाकी बहुत ही मनमोहक लगती है।मंदिर के प्रथम मंजिल पर राम चरिच मानस की विभिन्न भाषाओं में दुर्लभ प्रतियों का पुस्तकालय मौजूद है ।