इलाहाबाद

भारद्वाज आश्रम, इलाहाबाद
आनन्द भवन के सामने स्थित एक मन्दिर हैं। यही भगवान राम के वन गमन काल में महर्षि भारद्वाज का आश्रम हुआ करता था। यह आश्रम संत भारद्वाज से संबंधित है। और जब इसी संगम से आगे बडकर गंगा शिवजी की नगरी काशी में पहुँचती हैं तो यह जल से लभालब भरी रहती हैं। यमुना यमुनोत्री की निर्मल धारा लेकर मथुरा में क्रिष्ण की लीलाओँ को रूप देकर और आगरे में ताजमहल को नहला कर प्रयाग में गंगा में विलिन हो जाती हैं। प्रत्येक वर्ष के जनवरी फरवरी में इसकी महत्ता कई गुना बड जाती हैं। इस मेले में करोडोँ लोग संगम के पावन जल में डुबकी लगा कर पुण्य के भागीदार बनते हैं। कल्पवासी संगम के तट पर टेन्ट के बने घरोँ में निवास करते हैं। भारद्वाज आश्रम कोलोनगंज इलाके में स्थित है । यहाँ ऋषि भारद्वाज ने भार्द्वाजेश्वर महादेव का शिवलिंग स्थापित किया था और इसके अलावा यहाँ सैकड़ों मूर्तियांहैं उनमें से महत्वपूर्ण हैं: राम लक्ष्मण, महिषासुर मर्दिनी, सूर्य, शेषनाग, नर वराह। महर्षि भारद्वाज आयुर्वेद के पहले संरक्षक थे। भगवान राम ऋषि भारद्वाज के आश्रम में उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए आये थे। आश्रम कहाँ था यह अनुसंधान का एक मामला है, लेकिन वर्तमान में यह आनंद भवन के पास है। यहाँ भी भारद्वाज, याज्ञवल्क्य और अन्य संतों, देवी – देवताओं की प्रतिमा और शिव मंदिर है। भारद्वाज वाल्मीकि के एक शिष्य थे। यहाँ पहले एक विशाल मंदिर भी था और पहाड़ के ऊपर एक भरतकुंड था। नाग वासुकी मंदिर यह मंदिर संगम के उत्तर में गंगा तट पर दारागंज के उत्तरी कोने में स्थित है। यहाँ नाग राज, गणेश, पार्वती और भीष्म पितामाह की एक मूर्ति हैं। परिसर में एक शिव मंदिर है। नाग- पंचमी के दिन एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है। मनकामेश्वर मंदिर यह मिंटो पार्क के पास यमुना नदी के किनारे किले के पश्चिम में स्थित है। यहाँ एक काले पत्थर की शिवलिंग और गणेश और नंदी की प्रतिमाएं हैं। हनुमान की भव्य प्रतिमा और मंदिर के पास एक प्राचीन पीपल का पेड़ है। यह प्राचीन शिव मंदिर इलाहाबाद के बर्रा तहसील से 40 किमी दक्षिण पश्चिम में स्थित है। शिवलिंग सुरम्य वातावरण के बीच एक ८० फुट ऊंची पहाड़ी की चोटी पर स्थापित है। कहा जाता है कि शिवलिंग ३.५ फुट भूमिगत है और यह भगवान राम द्वारा स्थापित किया गया था। यहाँ कई विशाल बरगद के पेड़ और मूर्तियाँ हैं

आनन्द भवन, इलाहाबाद
स्वराज भवन इलाहाबाद में स्थित एक ऐतिहासिक भवन एवं संग्रहालय है। इसका मूल नाम ‘आनन्द भवन’ था। इस ऐतिहासिक भवन का निर्माण मोतीलाल नेहरू ने करवाया था।
1930 में उन्होंने इसे राष्ट्र को समर्पित कर दिया था। इसके बाद यहां कांग्रेस कमेटी का मुख्यालय बनाया गया। भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का जन्म यहीं पर हुआ था। आज इसे संग्रहालय का रूप दे दिया गया है।
1899 में मोतीलाल नेहरु ने चर्च लेन नामक मोहल्ले में एक अव्यवस्थित इमारत खरीदी। जब इस बंगले में नेहरु परिवार रहने के लिये आया तब इसका नाम आनन्द भवन रखा गया। पुरानी इमारत भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को सौँप दी गयी। 1931 में पं मोतीलाल नेहरु की गूजरने के बाद उनके पुत्र जवाहर लाल नेहरु ने एक ट्रस्ट बना कर स्वाराज भवन भारतीय जनता के ज्ञान के विकास स्वास्थ्य एंव सामाजिक आर्थिक उत्थान के लिये समर्पित कर दिया। इस इमारत के एक हिस्से में अस्पताल जो की आज कमाला नेहरु के नाम से जाना जाता हैं। और शेष अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के उपयोग के लिये था। 1948 से 1974 तक इस ईमारत का उपयोग बच्चोँ की शैक्षणिक गतिविधियोँ विकाय के लिये किया जता रहा और इसमें एक बाल भवन कि स्थापना कि गयी। बाल भवन में शैक्षिक यथा संगित विग्यान खेल आदि के विषय में बच्चोँ को सिखाया जता था। 1974 में स्वंगीय प्रधानमत्री इंदिरा गाँधी ने जवाहर लाल मेमोरियल फण्ड बना कर यह इमारत 20 वर्ष के लियें उसे पट्टे पर दे दिया। और उस इमारत में बाल भवन चलता रहा। किन्तु अब बाल भवन को स्वाराज भवन के ठीक बगल में स्थित एक अन्य मकान स्थापित कर दिया गया। और स्वाराज भवन को एक सग्रहालय के रूप में विकसित कर दिया गया।
स्वाराज भवन एक बडा भवन हैँ। और भारतीय स्वाधीनता संग्राम के दिनोँ का एक जीता जागता धरोहर हैँ। यही वह स्थान हैँ जहा पं जवाहरलाल नेहरु ने अपना बचपन बिताया। यहीँ से वो राजनिति कि प्रारम्भिक शिक्षा लेने के बाद में भारतीय स्वाधिनता संग्राम में शामिल हुये। जवाहरलाल नेहरु ने 1916 में अपने वैवाहिक जीवन का शुभ आरम्भ इसी भवन से किया। इसके अतिरिक्त यह राजनिति गतविधियोँ का एक मंच भी रहा। 1917 में उत्तर प्रदेश होम रुम लीन के अध्यक्ष मोतीलाल नेहरु एवं महामंत्री जवाहरलाल नेहरु थे। 19 नवम्बर 1919 को इंदिरा गाँधी का जन्म भी इसी भवन में हुआ। 1920 में आल इंडिया खिलाफत इसी भवन में बनायी गयी। भारत का संविधान लिखने के लिये चुनी गयी आल पार्टी का सम्मेलन भी इसी स्वाराज भवन में हुआ था।

अक्षय वट , इलाहाबाद
पुराणों में वर्णन आता है कि कल्पांत या प्रलय में जब समस्त पृथ्वी जल में डूब जाती है उस समय भी वट का एक वृक्ष बच जाता है। अक्षय वट कहलाने वाले इस वृक्ष के एक पत्ते पर ईश्वर बालरूप में विद्यमान रहकर सृष्टि के अनादि रहस्य का अवलोकन करते हैं। अक्षय वट के संदर्भ कालिदास के रघुवंश तथा चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के यात्रा विवरणों में मिलते हैं। भारतवर्ष में क्रमशः चार पौराणिक पवित्र वटवृक्ष हैं— गृद्धवट- सोरों ‘शूकरक्षेत्र’, अक्षयवट- प्रयाग, सिद्धवट- उज्जैन और वंशीवट- वृन्दावन।
अक्षय वट प्रयाग में त्रिवेणी के तट पर आज भी अवस्थित कहा जाता है।
हिन्दुओं के अलावा जैन और बौद्ध भी इसे पवित्र मानते हैं। कहा जाता है बुद्ध ने कैलाश पर्वत के निकट प्रयाग के अक्षय वट का एक बीज बोया था।[1] जैनों का मानना है कि उनके तीर्थंकर ऋषभदेव ने अक्षय वट के नीचे तपस्या की थी। प्रयाग में इस स्थान को ऋषभदेव तपस्थली (या तपोवन) के नाम से जाना जाता है।
वाराणसी और गया में भी ऐसे वट वृक्ष हैं जिन्हें अक्षय वट मान कर पूजा जाता है। कुरुक्षेत्र के निकट ज्योतिसर नामक स्थान पर भी एक वटवृक्ष है जिसके बारे में ऐसा माना जाता है कि यह भगवान कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए गीता के उपदेश का साक्षी है। सोरों ‘शूकरक्षेत्र’ में वाराहपौराणिक पवित्र गृद्धवट है, जहाँ पृथ्वी-वाराह सम्वाद हुआ था।