अयोध्या जी

राम जन्मि भूमि, अयोध्या
आमतौर पर अयोध्याम को श्री राम की जन्मोभूमि के रूप में जाना जाता है लेकिन इस शहर में भी राम कोट वार्ड में एक ऐसा केंद्र है जहां भगवान श्री राम का जन्मू हुआ था, जिसे राम जन्म भूमि के नाम से जाना जाता है। यहां भगवान राम को समर्पित एक छोटा सा मंदिर है। इस मंदिर को पहली बार 15 वीं शताब्दीू में भारत के प्रथम मुगल शासक के द्वारा क्षति पंहुचाई गई थी और अपवित्र किया गया था।
बाबर ने इस मंदिर के स्थाकन पर एक मस्जिद बनवाई जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था। यह स्थरल 1528 से 1853 तक मुसलमानों के लिए धार्मिक स्थजल था। उस दौर से यह जगहभ झगड़े की जड़ बनी हुई है, दो समुदाय आपस में इसी जगह की वजह से भिड़ जाते है और कई बार दंगे होने का खतरा रहता है।
सरकार द्वारा इस स्थ ल को हिंदू और मुस्लिम दोनों के लिए पूजा का स्थरल निर्धारित किया है। राम भक्तों ने इस मंदिर में 1949 को भगवान राम, लक्ष्मेण, भरत और शत्रुघ्नत की बाल्यहकाल की मूर्तियों को रख दिया था। 6 दिसम्बसर, 1992 को विश्वल हिंदू परिषद के नेतृत्वऔ में राम भक्तों ने मस्जिद को नष्टि कर दिया था, जो माता सीता की रसोई वाले स्थ‍ल पर बनाई गई थी।
यह वास्त व में एक और मंदिर है जो हनुमान जी के दूसरे मंदिर के साथ है। बाद में यह विनाश देश के सबसे सांप्रदायिक दंगों में से एक बन गया जो देश की सबसे खराब हिंसा थी।

हनुमान गडी मंदिर , अयोध्या
अयोध्या वह पावन नगरी है, जहां की सरयू नदी में लोग अपने पाप धोने दूर-दूर से आते हैं. यह भगवान राम का राज्य है, जहां हनुमान वास करते हैं. अयोध्याद आकर भगवान राम के दर्शन के लिए भक्तों को हनुमान के दर्शन कर उनसे आज्ञा लेनी होती है. 76 सीढ़ियों का सफर तय कर भक्त पवनपुत्र के सबसे छोटे रूप के दर्शन करते हैं.
अयोध्या नगरी में आज भी भगवान श्रीराम का राज्य चलता है. मान्यता है कि भगवान राम जब लंका जीतकर अयोध्या लौटे, तो उन्होंने अपने प्रिय भक्त हनुमान को रहने के लिए यही स्थान दिया. साथ ही यह अधिकार भी दिया कि जो भी भक्त यहां दर्शन के लिए अयोध्या आएगा, उसे पहले हनुमान का दर्शन-पूजन करना होगा.
रामकाल के इस हनुमान मंदिर के निर्माण के कोई स्पष्ट साक्ष्य तो नहीं मिलते हैं. लेकिन कहते हैं कि अयोध्या न जाने कितनी बार बसी और उजड़ी, फिर भी एक स्थान हमेशा अपने मूल रूप में ही रहा. यही वह हनुमान टीला है, जो आज हनुमानगढ़ी के नाम से प्रसिद्ध है. इस टीले तक पहुंचने के लिए भक्तों को पार करना होता है 76 सीढ़ियों का सफर, जिसके बाद दर्शन होते है पवनपुत्र हनुमान की 6 इंच प्रतिमा के, जो हमेशा फूल-मालाओं से सुशोभित रहती है.